तस पाहायला गेल तर हा ब्लॉग मी फक्त आणि फक्त जगामध्ये जे सतत होणारे बदल आणि व्यक्तींची बदलणारी मानसिकता १२५ कोटी हिंदू वंशाच्या लोकांच्या राष्ट्राच्या कल्याणासाठी समर्पित आहे विशेष करून हिंदू वंशात अल्प आणि जमीन हीन झालेल्या आगरी कोळी लोकांचे कष्ट कसे दूर करता यावेत याचा विचार मी सतत करीत असतो
गुरुवार, ७ नोव्हेंबर, २०१३
अबू
आझमी उत्तर भारतीयांना मुर्खात काढतोय ! हा साला मुसलमान आपल्यात फूट पडतोय
…महार्ष्ट्रातले शेतकरी किती परिश्रम करतात ,येथील लोक किती कष्टाळू आहेत
हे ह्याला माहित आहे …तरिहि हा राजकारण करणार …। ह्याला उत्तर भारतातील
हिंदूच एका दिवशी उडवतील !
सापाची जात हि दुध पाजल तरीही डंख मरणारच ! हिंदूंनो सावध व्हा
ये पोस्ट ना पडकर आपको जीवन भर अफसोस रहेगा...
ये पोस्ट ना पडकर आपको जीवन भर अफसोस रहेगा...
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अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. उसपर
बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी . दोस्तों ने भी
मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही
थी. आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी.
एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था.
तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे.
बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी.
बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है. मैं
तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो. इसलिए मैं
तुम्हे दस
लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.”
फिर जेब से
checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले,
“नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे. तब तुम मेरा कर्ज
चुका देना.”
इतना कहकर वो चले गए. युवक shocked था. Rockefeller तब
america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे. युवक को तो भरोसा ही नहीं
हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी. उसके पैरो को पंख लग
गये.
घर पहुंचकर वह अपने कर्जो का हिसाब लगाने लगा. बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है.
अचानक उसके मन में ख्याल आया. उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझपे
भरोसा किया, पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ. यह ख्याल आते ही उसने
चेक को संभाल कर रख लिया. उसने निश्चय कर लिया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी
कोशिश करेगा, पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से निकल जाए. उसके बाद भी
अगर कोई चारा न बचे तो वो check use करेगा.
उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया. बस एक ही धुन थी, किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं.
उसकी कोशिशे रंग लाने लगी. कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा. साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था.
निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया.
वह चेक लेकर Rockefeller की राह देख रहा था की वे दूर से आते दिखे. जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया.
उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते
हुए आई और झपट्टा मरकर वृद्ध को पकड़ लिया. युवक हैरान रह गया. नर्स बोली,
“यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता हैं और लोगो को जॉन डी .
Rockefeller के रूप में check बाँटता फिरता हैं. ”
अब वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान रह गया. जिस check के बल पर उसने
अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा किया,वह फर्जी था. पर यह बात जरुर
साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती
हैं.
हम सभी यदि खुद पर विश्वास रखे तो यक़ीनन किसी भी असुविधा से, situation से निपट सकते है.
मंगळ
अभिनंदन
हिंदुराष्ट्र , मंगळ ग्रहावर वचक ठेवण्याची आणि संशोधन करण्याची
महत्वाकांक्षा पूर्ण करण्याचे उचल लेल्या प्रभावी पावलासाठी
.तुमच्या आणि माझ्या इच्छा लवकरात लवकर साफल्य होवो .
हम समाज के पिछड़े हुए लोगों को चाहे जितना ठुकरायें , पर हमें भी उनकी ज़रूरत रहती ही है और कभी-कभी तो वे लोग हम सभ्य समाज के लोगो से कई गुना ज़्यादा सभ्य और प्रतिभावान साबित होते हैं | मैं खुद एक छोटे शहर की रहने वाली हूँ लेकिन कई कारणों से हमेशा ही मैं बड़े शहर , छोटे शहर या गाँव हर तरह के इलाकों से जुड़ी रहती हूँ | समाज के पिछड़े हुए लोगों को मैंने बहुत करीब से देखा है , वे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं इसके लिए कुछ तो जिम्मेदार यहाँ की सरकार है और कुछ हम हैं | सरकार हमेशा ही उन लोगों को एक ओर अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है तो दूसरी ओर दमननीति का भी इस्तेमाल करती है और हम उन सबको उपेक्षा की नज़र से देखते हैं | उन लोगों को हम अपने सामने बहुत ही छोटा समझते हैं | उन लोगों को कभी भी उनका अधिकार नहीं देते हैं | मैंने कई दफा देखा है उन लोगों के बच्चों में नई चीज़ें जानने की बहुत ज़्यादा ललक होती है | इस ललक का अभाव मैंने बहुत अच्छे अच्छे शहरी विद्यालय की छात्र/छात्रा में पाया है | पता नहीं इसका कारण क्या है ? शायद ज़्यादा दमित हुए हैं ये लोग इसलिए जब कुछ जानने का मौका इन लोगों को मिलता है तब ये लोग उस चीज़ पर अपना पूरा ध्यान लगाते हैं और सबसे आगे जाने की एक ज़िद्द पकड़ लेते हैं अपने आपको साबित करने के लिए | हम खुद को कहते है कि हैम वक़्त के साथ साथ हम आगे बढ़ गए हैं और अपनी सोच को भी बहुत बड़ा कर लिया है | लेकिन वास्तविकता यह है हम ज़्यादा नहीं सुधरे बस समाज के सामने महान बनने का ढोंग मात्र करते हैं घर जाते जाते अपने असलियत पर उतर आते हैं | समानता की बातें भाषणबाजी के वक़्त अच्छी लगती है बोलने में और सुनने में -- पर वास्तविकता क्या है , यह हम सबको खुद ही पता है | हाँ , ऐसे लोग भी हैं जो समाज के लिए सच्चे मन से कार्य करते हैं और करना चाहते हैं लेकिन समाज के कुछ गिने चुने सभ्य और नेता जैसे लोग उन लोगों का हमेशा ही दमन करते रहते हैं और उन्हें आगे नहीं बढ़ने देते |हम समाज के पिछड़े हुए लोगों को चाहे जितना ठुकरायें , पर हमें भी उनकी ज़रूरत रहती ही है और कभी-कभी तो वे लोग हम सभ्य समाज के लोगो से कई गुना ज़्यादा सभ्य और प्रतिभावान साबित होते हैं | मैं खुद एक छोटे शहर की रहने वाली हूँ लेकिन कई कारणों से हमेशा ही मैं बड़े शहर , छोटे शहर या गाँव हर तरह के इलाकों से जुड़ी रहती हूँ | समाज के पिछड़े हुए लोगों को मैंने बहुत करीब से देखा है , वे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं इसके लिए कुछ तो जिम्मेदार यहाँ की सरकार है और कुछ हम हैं | सरकार हमेशा ही उन लोगों को एक ओर अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है तो दूसरी ओर दमननीति का भी इस्तेमाल करती है और हम उन सबको उपेक्षा की नज़र से देखते हैं | उन लोगों को हम अपने सामने बहुत ही छोटा समझते हैं | उन लोगों को कभी भी उनका अधिकार नहीं देते हैं | मैंने कई दफा देखा है उन लोगों के बच्चों में नई चीज़ें जानने की बहुत ज़्यादा ललक होती है | इस ललक का अभाव मैंने बहुत अच्छे अच्छे शहरी विद्यालय की छात्र/छात्रा में पाया है | पता नहीं इसका कारण क्या है ? शायद ज़्यादा दमित हुए हैं ये लोग इसलिए जब कुछ जानने का मौका इन लोगों को मिलता है तब ये लोग उस चीज़ पर अपना पूरा ध्यान लगाते हैं और सबसे आगे जाने की एक ज़िद्द पकड़ लेते हैं अपने आपको साबित करने के लिए | हम खुद को कहते है कि हैम वक़्त के साथ साथ हम आगे बढ़ गए हैं और अपनी सोच को भी बहुत बड़ा कर लिया है | लेकिन वास्तविकता यह है हम ज़्यादा नहीं सुधरे बस समाज के सामने महान बनने का ढोंग मात्र करते हैं घर जाते जाते अपने असलियत पर उतर आते हैं | समानता की बातें भाषणबाजी के वक़्त अच्छी लगती है बोलने में और सुनने में -- पर वास्तविकता क्या है , यह हम सबको खुद ही पता है | हाँ , ऐसे लोग भी हैं जो समाज के लिए सच्चे मन से कार्य करते हैं और करना चाहते हैं लेकिन समाज के कुछ गिने चुने सभ्य और नेता जैसे लोग उन लोगों का हमेशा ही दमन करते रहते हैं और उन्हें आगे नहीं बढ़ने देते |
'लिली कर्मकार'
हिंदुस्तानाला नितीमत्तेची उणीव भासत आहे
हिंदुस्तानाला नितीमत्तेची उणीव भासत आहे
October 23, 2013 at 2:06pm
ज्या
लोकांच्या गरजा कमी असतात , जे कोणत्याही अमिषाला बळी पडत नाही त्यांना
कुणाचा बाप हि विकत घेऊ शकत नाही किंवा ते कोणत्याही दबावाला जुमानत नाहीत
……।
माननीय दिवंगत पंतप्रधान लालबहादूर शास्त्री यांनी महाशक्ती अमेरिकेच्या दबाव तंत्राला बळी न पडता , अन्न धान्याची टंचाई असलेल्या काळात स्वत पासून फक्त एक वेळ जेवण करण्याचा जो निर्णय घेतला तो मोहनदास गांधींच्या सत्याग्रहाच्या निर्णयापेक्षा कित्त्येक पटीने महान होता ! त्याच नीतिमत्तेच्या आणि हिंदुस्थानी जवानांच्या शौर्याने पाकिस्तानचा पराभव केला .......
आज त्या नितीमत्तेची हिंदुस्तानाला उणीव भासत आहे ……कारण ती नित्तीमत्ता आज कालच्या सत्ताधीशांमध्ये ०.००००००००१% एवढी सुद्धा राहिली नाही आहे .
लालबहादूर शास्त्री (रोमन लिपी: Lal Bahadur Shastri) (२ ऑक्टोबर, इ.स. १९०४ - ११ जानेवारी, इ.स. १९६६) हे भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील स्वातंत्र्यसैनिक व भारतीय प्रजासत्ताकाचे दुसरे पंतप्रधान होते. ९ जून, इ.स. १९६४ रोजी यांनी पंतप्रधानपदाची सूत्रे हाती घेतली. यांच्या कार्यकाळात इ.स. १९६५सालचे दुसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध घडले. सोव्हियेत संघाच्या मध्यस्थीने पाकिस्तानबरोबर युद्धबंदीचा ताश्कंद करार करण्यासाठी ताश्कंद (तत्कालीन सोव्हियेत संघात, वर्तमान उझबेकिस्तानात) येथे दौऱ्यावर असताना ११ जानेवारी, इ.स. १९६६ रोजी यांचा हृदयविकाराचे दोन झटके येऊन मृत्यू झाला.
जीवन
२ ऑक्टोबर, इ.स. १९०४ साली वाराणसी येथे एका गरीब, प्राथमिक शिक्षकाच्या घरी त्यांचा जन्म झाला. ते दीड वर्षांचे झाले तेव्हा त्यांचे वडील निधन पावले. माता रामदुलारी आपल्या मुलांना पदराखाली घालून माहेरी आली. प्राथमिक शिक्षण मिर्झापूर येथे तर माध्यमिक शिक्षण वाराणशीला झाले. तेथे त्यांना निल्कामेश्वर प्रसाद असे पितृतुल्य गुरू भेटले. त्यांनी लोकमान्य टिळक, लाला लजपतराय यांच्या जीवनदर्शनाचे तज्ञ्ल्त्;व त्यांना समजाविले.
वयाच्या अकराव्या वर्षी बनारस हिंदू विश्वविद्यालयाची किनशिला बसविण्यासाठी आलेले गांधीजी त्यांना दिसले. तिथे त्यांच्या गाजलेल्या भाषणाने ते भारावून गेले. मग त्यांनी गांधीजींची पाठ सोडली नाही. चंपारण्य सत्याग्रह, रौलेट अॅक्ट, जालियनवाला हत्याकांड इत्यादी घटनांचे प्रतिसाद त्यांच्या मनात घर करून बसले. विदेशीवर बहिष्कार, स्वदेशीचा वापर यातच लालबहादूर गुंतले व त्यातून सुटताच पुन्हा विद्यापीठात दाखल झाले. काशी विद्यापीठाचे 'शास्त्री' झाले.( त्यांचे मूळ आडनाव 'श्रीवास्तव' हे होते.) 'सर्व्हटस ऑफ दि पीपल्स' सोसायटीचे सदस्य झाले. शैक्षणिक आणि सामाजिक सुधारणा हे त्यांचे ध्येय होते. समानतेचे सूत्र होते. इ.स. १९२८ साली लाला लजपतराय गेले व पुरूषोत्तमदास टंडन सोसायटीचे अध्यक्ष झाले. ते अलाहाबादला दाखल झाले. त्यांचीच अध्यक्ष म्हणून निवड झाली. विधायक कार्यकत्र्यांची ती पाठशाळाच होती. आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी, डॉ. भगवानदास, डॉ. संपूर्णानंद, श्रीप्रकाश यांचा परिचय व मैत्री झाली.
नेहरू, शास्त्रीना कॉंग्रेसचे मवाळ धोरण मान्य नव्हते. इ.स. १९३७ मध्ये सत्याग्रह करून ते कारावासात गेले. सत्तेची लालसा नव्हती; पण इ.स. १९४६ साली निवडणुका झाल्या. ते गोविदवल्लभ पंतांचे सेेक्रटरी झाले. पंत गेल्यावर ते उत्तर प्रदेशचे मुख्यमंत्री झाले. इ.स. १९५१ साली मध्ये त्यांनी पं. जवाहरलालजींनी त्यांना काॅंग्रेसचे सचिव केले. इ.स. १९५६ साली त्यांना रेल्वेमंत्रीपद दिले. पण एका अपघाताची नैतिक जबाबदारी घेऊन त्यांनी त्या पदाचा राजिनामा दिला. इ.स. १९५७ मध्ये त्यांनी कॉंग्रेसला निवडणुका जिंकून दिल्या. २७मे, इ.स. १९६४ला नेहरू गेले. त्यानंतर लालबहादूर एकमताने पंतप्रधान झाले. पाकिस्तानला ही सुसंधी वाटली. पाकिस्तानने भारतावर आक्रमण केले. 'जय जवान, जय किसान' हा घोषणामंत्र वातावरणात निनादला. भारताने पाकिस्तानला नमविले. [युनो]]ने युद्धबंदी केली. रशियाने मध्यस्थी केली. १० जानेवारी, इ.स. १९६६ रोजी ह्रदयविकाराच्या तीव्र झटल्याने त्यांची जीवनज्योत मालवली. त्यांनी देशासाठी केलेल्या महत्त्वपूर्ण कार्यासाठी त्यांना मरणोत्तर भारतरत्न पुरस्काराने गौरवण्यात आले.
मृत्यूविषयी प्रवाद
शास्त्रींवर विषप्रयोग झाल्याचा आरोप त्यांच्या पत्नी ललिता शास्त्रींनी सातत्याने केला. मृत्यूनंतर त्यांचे शरीर काळेनिळे पडले होते हा त्यांच्यावरील विषप्रयोगाचा पुरावाच असल्याचे अनेकांचे मत आहे. शास्त्रींच्या रशियन स्वयंपाक्याला त्यांच्यावर विषप्रयोग केल्याच्या आरोपावरून अटकही करण्यात आली होती, मात्र नंतर त्याची निर्दोष सुटका करण्यात आली. इ.स. २००९ साली अरूण धर यांनी माहितीहक्काच्या कायद्यानुसार पंतप्रधान कार्यालयाकडे शास्त्रींच्या मृत्यूचे कारण जाहीर करण्याची विनंती केली. पण पंतप्रधान कार्यालयाने ही विनंती फेटाळून लावली. त्यासाठी कारण देताना यामुळे आपले इतर देशांशी असलेले संबंध बिघडण्याची शक्यता, देशात हिंसाचार उफाळून येण्याची शक्यता आणि संसदेच्या विशेषाधिकाराचा भंग होऊ शकतो असे नमूद करण्यात आले. पंतप्रधान कार्यालयाने शास्त्रींच्या मृत्यूबाबत एक दस्ताऐवज आपल्याकडे असल्याचा दावा केला, मात्र तो उघड करण्यास नकारही दिला. तसेच त्यावेळच्या सोवियत रशियाने शास्त्रींचे पोस्टमॉर्टेम न केल्याचे मान्य केले. पण, शास्त्रींचे वैयक्तिक डॉक्टर आर. एन. चुग आणि काही रशियन डॉक्टरांनी केलेल्या तपासणीचा अहवाल आपल्याजवळ असल्याचे मान्य केले. आपल्याकडील कोणताही दस्तऐवज नष्ट केलेला नाही वा गहाळ झालेला नाही हेसुद्धा पंतप्रधान कार्यालयाने नमूद केले. मात्र भारताने त्यांच्या पार्थिवाचे पोस्टमॉर्टेम केले वा नाही, तसेच शास्त्रींच्या मृत्यूबाबत कोणतीही दुर्घटना घडवून आणण्यात आली होती वा कसे याबाबत कोणतीही प्रतिक्रिया जुलै, इ.स. २००९ पर्यंत तरी गृहमंत्रालयाने दिलेली नाही.
माननीय दिवंगत पंतप्रधान लालबहादूर शास्त्री यांनी महाशक्ती अमेरिकेच्या दबाव तंत्राला बळी न पडता , अन्न धान्याची टंचाई असलेल्या काळात स्वत पासून फक्त एक वेळ जेवण करण्याचा जो निर्णय घेतला तो मोहनदास गांधींच्या सत्याग्रहाच्या निर्णयापेक्षा कित्त्येक पटीने महान होता ! त्याच नीतिमत्तेच्या आणि हिंदुस्थानी जवानांच्या शौर्याने पाकिस्तानचा पराभव केला .......
आज त्या नितीमत्तेची हिंदुस्तानाला उणीव भासत आहे ……कारण ती नित्तीमत्ता आज कालच्या सत्ताधीशांमध्ये ०.००००००००१% एवढी सुद्धा राहिली नाही आहे .
लालबहादूर शास्त्री (रोमन लिपी: Lal Bahadur Shastri) (२ ऑक्टोबर, इ.स. १९०४ - ११ जानेवारी, इ.स. १९६६) हे भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील स्वातंत्र्यसैनिक व भारतीय प्रजासत्ताकाचे दुसरे पंतप्रधान होते. ९ जून, इ.स. १९६४ रोजी यांनी पंतप्रधानपदाची सूत्रे हाती घेतली. यांच्या कार्यकाळात इ.स. १९६५सालचे दुसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध घडले. सोव्हियेत संघाच्या मध्यस्थीने पाकिस्तानबरोबर युद्धबंदीचा ताश्कंद करार करण्यासाठी ताश्कंद (तत्कालीन सोव्हियेत संघात, वर्तमान उझबेकिस्तानात) येथे दौऱ्यावर असताना ११ जानेवारी, इ.स. १९६६ रोजी यांचा हृदयविकाराचे दोन झटके येऊन मृत्यू झाला.
जीवन
२ ऑक्टोबर, इ.स. १९०४ साली वाराणसी येथे एका गरीब, प्राथमिक शिक्षकाच्या घरी त्यांचा जन्म झाला. ते दीड वर्षांचे झाले तेव्हा त्यांचे वडील निधन पावले. माता रामदुलारी आपल्या मुलांना पदराखाली घालून माहेरी आली. प्राथमिक शिक्षण मिर्झापूर येथे तर माध्यमिक शिक्षण वाराणशीला झाले. तेथे त्यांना निल्कामेश्वर प्रसाद असे पितृतुल्य गुरू भेटले. त्यांनी लोकमान्य टिळक, लाला लजपतराय यांच्या जीवनदर्शनाचे तज्ञ्ल्त्;व त्यांना समजाविले.
वयाच्या अकराव्या वर्षी बनारस हिंदू विश्वविद्यालयाची किनशिला बसविण्यासाठी आलेले गांधीजी त्यांना दिसले. तिथे त्यांच्या गाजलेल्या भाषणाने ते भारावून गेले. मग त्यांनी गांधीजींची पाठ सोडली नाही. चंपारण्य सत्याग्रह, रौलेट अॅक्ट, जालियनवाला हत्याकांड इत्यादी घटनांचे प्रतिसाद त्यांच्या मनात घर करून बसले. विदेशीवर बहिष्कार, स्वदेशीचा वापर यातच लालबहादूर गुंतले व त्यातून सुटताच पुन्हा विद्यापीठात दाखल झाले. काशी विद्यापीठाचे 'शास्त्री' झाले.( त्यांचे मूळ आडनाव 'श्रीवास्तव' हे होते.) 'सर्व्हटस ऑफ दि पीपल्स' सोसायटीचे सदस्य झाले. शैक्षणिक आणि सामाजिक सुधारणा हे त्यांचे ध्येय होते. समानतेचे सूत्र होते. इ.स. १९२८ साली लाला लजपतराय गेले व पुरूषोत्तमदास टंडन सोसायटीचे अध्यक्ष झाले. ते अलाहाबादला दाखल झाले. त्यांचीच अध्यक्ष म्हणून निवड झाली. विधायक कार्यकत्र्यांची ती पाठशाळाच होती. आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी, डॉ. भगवानदास, डॉ. संपूर्णानंद, श्रीप्रकाश यांचा परिचय व मैत्री झाली.
नेहरू, शास्त्रीना कॉंग्रेसचे मवाळ धोरण मान्य नव्हते. इ.स. १९३७ मध्ये सत्याग्रह करून ते कारावासात गेले. सत्तेची लालसा नव्हती; पण इ.स. १९४६ साली निवडणुका झाल्या. ते गोविदवल्लभ पंतांचे सेेक्रटरी झाले. पंत गेल्यावर ते उत्तर प्रदेशचे मुख्यमंत्री झाले. इ.स. १९५१ साली मध्ये त्यांनी पं. जवाहरलालजींनी त्यांना काॅंग्रेसचे सचिव केले. इ.स. १९५६ साली त्यांना रेल्वेमंत्रीपद दिले. पण एका अपघाताची नैतिक जबाबदारी घेऊन त्यांनी त्या पदाचा राजिनामा दिला. इ.स. १९५७ मध्ये त्यांनी कॉंग्रेसला निवडणुका जिंकून दिल्या. २७मे, इ.स. १९६४ला नेहरू गेले. त्यानंतर लालबहादूर एकमताने पंतप्रधान झाले. पाकिस्तानला ही सुसंधी वाटली. पाकिस्तानने भारतावर आक्रमण केले. 'जय जवान, जय किसान' हा घोषणामंत्र वातावरणात निनादला. भारताने पाकिस्तानला नमविले. [युनो]]ने युद्धबंदी केली. रशियाने मध्यस्थी केली. १० जानेवारी, इ.स. १९६६ रोजी ह्रदयविकाराच्या तीव्र झटल्याने त्यांची जीवनज्योत मालवली. त्यांनी देशासाठी केलेल्या महत्त्वपूर्ण कार्यासाठी त्यांना मरणोत्तर भारतरत्न पुरस्काराने गौरवण्यात आले.
मृत्यूविषयी प्रवाद
शास्त्रींवर विषप्रयोग झाल्याचा आरोप त्यांच्या पत्नी ललिता शास्त्रींनी सातत्याने केला. मृत्यूनंतर त्यांचे शरीर काळेनिळे पडले होते हा त्यांच्यावरील विषप्रयोगाचा पुरावाच असल्याचे अनेकांचे मत आहे. शास्त्रींच्या रशियन स्वयंपाक्याला त्यांच्यावर विषप्रयोग केल्याच्या आरोपावरून अटकही करण्यात आली होती, मात्र नंतर त्याची निर्दोष सुटका करण्यात आली. इ.स. २००९ साली अरूण धर यांनी माहितीहक्काच्या कायद्यानुसार पंतप्रधान कार्यालयाकडे शास्त्रींच्या मृत्यूचे कारण जाहीर करण्याची विनंती केली. पण पंतप्रधान कार्यालयाने ही विनंती फेटाळून लावली. त्यासाठी कारण देताना यामुळे आपले इतर देशांशी असलेले संबंध बिघडण्याची शक्यता, देशात हिंसाचार उफाळून येण्याची शक्यता आणि संसदेच्या विशेषाधिकाराचा भंग होऊ शकतो असे नमूद करण्यात आले. पंतप्रधान कार्यालयाने शास्त्रींच्या मृत्यूबाबत एक दस्ताऐवज आपल्याकडे असल्याचा दावा केला, मात्र तो उघड करण्यास नकारही दिला. तसेच त्यावेळच्या सोवियत रशियाने शास्त्रींचे पोस्टमॉर्टेम न केल्याचे मान्य केले. पण, शास्त्रींचे वैयक्तिक डॉक्टर आर. एन. चुग आणि काही रशियन डॉक्टरांनी केलेल्या तपासणीचा अहवाल आपल्याजवळ असल्याचे मान्य केले. आपल्याकडील कोणताही दस्तऐवज नष्ट केलेला नाही वा गहाळ झालेला नाही हेसुद्धा पंतप्रधान कार्यालयाने नमूद केले. मात्र भारताने त्यांच्या पार्थिवाचे पोस्टमॉर्टेम केले वा नाही, तसेच शास्त्रींच्या मृत्यूबाबत कोणतीही दुर्घटना घडवून आणण्यात आली होती वा कसे याबाबत कोणतीही प्रतिक्रिया जुलै, इ.स. २००९ पर्यंत तरी गृहमंत्रालयाने दिलेली नाही.
श्री तुळजाभवानी देवी
“ तुळजापूरनिवासिनी श्री तुळजाभवानी देवी म्हणजे संपूर्ण महाराष्ट्राचे कुलदैवत. ”
||श्री गणेशाय नम: ||
अतध्यानम्
“शामां पूर्णेन्दुवदनाम् श्वेतांबरधरां शिवाम् | महामेघ निनादातां निर्वाते दीप वस्त्थिताम ||१||”
अतध्यानम्
तुळजाभवानी देवीचे ध्यान असे आहे,पूर्ण चंद्राप्रमाणे मुख ,सावळा वर्ण असून पवित्र असे शुभ्र वस्त्र धारण केलेले आहे.विशाल मेघाच्या धीरगंभीर ध्वनित शांत वातावरणातील स्थिर दिव्याप्रमाणे तिचे रूप आहे.
“भुजाष्टकयुक्ता बाणां चापशूल गदा धरम् | खड्गशंख गदाचक्र वरदाभयधारिणीम् ||२||”
आठ
हातांनी युक्त बाण, चाप, शूल, गदा धारण करणाऱ्या खड्ग, शंख, गदा व चक्र हाती धरणाऱ्या अशा व वर देणारी अभय मुद्रा धारण करणाऱ्या तुळजाभवानीचे ध्यान करावे.
“श्री गणेशाय नमः अथ तुळजा कवचम् |
श्री देव्युवाच देवेश परमेशान भवतानुग्रहकारक तुळजाकवचम् वक्ष्ये मम प्रीत्या महेश्वर ||
शृणुदेवी महागुह्यं गुहतरं महत् || तुळजा कवचम् वक्ष्ये न देयं कस्याचित् ||”
श्री गणपतीला नमस्कार असो.आता तुळजा कवच प्रकट करतो.श्रीदेवी म्हणाली ,हे देवेश भक्तावर कृपा करणाऱ्या परमेश्वरा ,माझ्यावरील प्रेमामुळे हे महेशा ,तू हे तुरजा कवच सांग .ईश्वर म्हणाले, हे देवी, मोठ्या गुढांपेक्षाही अतिशय गुढ असे हे महान तुळजा कवच मी सांगत आहे ते कोणालाही(भलत्या सलत्याला) देवू नये.
“अस्य श्री तुरजाकवचमालामंत्रस्य श्री रामचंद्र ऋषी श्री तुरजादेवता |
अनुष्टुप छंदः | श्री तुळजाप्रसादसिद्धर्थेजपेविनियोग ः |”
या
तुळजा कवच माला मंत्राच ऋषी म्हणजे स्वतः श्री राम व अधिष्ठात्री देवता श्री तुळजाभवानी आहेत.या कवचाचा छंद अनुष्टुप आहे.या कवचाचा विनियोग श्री तुळजादेवीचा प्रसाद प्राप्त होण्यासाठी आणि जप करण्यासाठी आहे.
“ श्री शंकर उवाच | तुळजा मी शिरः पातु भाले तू परमेश्वरी | नेत्रे नारायणी रक्षेत्कर्णमूले तू शांकरी ||१|| ”
श्री शंकर म्हणाले, तुळजादेवी माझ्या मस्तकाचे रक्षण ,नारायणी दोन्ही कर्णमुळांचे (कानांचे) रक्षण शांकरी करो.
“ मुखंपातु महामाया कण्ठम् भुवनसुंदरी | बाहुद्वयम् विश्वमाता हृदयंशिववल्लभा ||२|| ”
माझ्या मुखाचे रक्षण महामाया ,कंठाचे रक्षण भुवनसुंदरी करो, दोन्ही हातांचे रक्षण विश्वमाता, तसेच हृदयाचे रक्षण शिववल्लभा करो.
“नाभिं कुंडलिनीपातु जानुनी जान्हवी तथा | पादयो: पापनाशींच पादग्रम सर्वतीर्थवत् ||३|| ”
नाभिंचे रक्षण कुंडलिनी, गुडघ्याचे रक्षण जान्हवी, तसेच पायांचे रक्षण आणि सर्वतीर्थाप्रमाणे असणाऱ्या पायांच्या टोकांचे रक्षण पापनाशिनी करो.
“इंद्रायणी पातु पूर्वे आग्नेय्याम् अग्निदेवता | दक्षिणे नारसिंहीच नैऋत्याम् खड्ग धारिणी ||४||”
पूर्वेकडे इंद्रायणी तर आग्नेय दिशेकडे आग्नेय देवी रक्षण करो, दक्षिणेकडे नारसिंही, तर नैऋत्येकडे खड्गधारिणी रक्षण करो.
“पश्चिमेवारुणी पातु वायव्याम् वायुरुपिणी | उदीच्या पाशहस्ताच ईशान्ये ईश्वरी तथा ||५|| ”
पश्चिमेकडे वारुणी आणि वायव्येकडे वायुरुपिणी, उत्तरेकडे पाशधारण करणारी देवी, तर ईशान्येकडे ईश्वरी रक्षण करो.
“ऊर्ध्वंब्रह्मणिमे रक्षेद् दधास्या वैष्णवी तथा | एवं दशदिशोरक्षेत् सर्वांगे भुवनेश्वरी ||६|| ”
उर्ध्व दिशेकडे ब्रह्माणी तर अधो दिशेकडे वैष्णवी रक्षण करो, शरीरातील अशा दहा दिशांचे रक्षण भुवनेश्वरी करो.
“इदं तु कथितं दिव्यम् सर्वदेहिकम् | भूतग्रह हरं नित्य ग्रहपिडा तथैवच ||७|| ”
हे
सर्व शरीराचे करणारे असे दिव्य कवच सांगितले. हे भूतबाधा आणि ग्रहपीडा कायम दूर करणारे आहे.
“सर्व पापहरेदेवी अंते सायुज्य प्राप्नुयात् | यत्र तत्र न ववतव्यं यदिछेदात्मनोहितम् ||८|| ”
हे
सर्व पापांचा नाश करणाऱ्या देवी कवचाचे पठण करणाऱ्यास शेवटी सायुज्य मुक्ती प्राप्त होईल. स्वतःचे कल्याणकरू इच्छिनाऱ्यांने हे भलत्यासलत्या ठिकाणी सांगू नये.
“शठाय भक्तिहीनाय विष्णुद्वेषाय वै तथा | शिष्याय भक्तीयुक्ताय साधकाय प्रकाशयेत ||९|| ”
शठ
भक्तिहीन तसेच विष्णूचा द्वेष करणाऱ्या कोणालाही हे कवच सांगू नये. शिष्य-भक्तियुक्त अशा साधकाला मात्र ते प्रकट करावे.
“दध्यात कवचमियुक्तम् तत्पुण्यं शृणुपार्वती | अश्वमेध सहस्त्राणि कन्याकोटी शचानिच ||१०|| ”
हे
कवच कोणत्या प्रकारचे पुण्य देईल ते पार्वती तु सांग.(पार्वती म्हणाली)हजारो अश्वमेध केल्याचे,शंभर कोटी संख्यात्मक कन्यादान केल्याचे पुण्य---
“गवाम् लक्षसहस्राणि तत्पुण्यं लभते नरः | अष्टम्यां चतुर्दश्यां नवम्यां चैक चेतसा ||११|| ”
ते
पुण्य या कवच पठणाने माणसास प्राप्त होईल. अष्टमीला(शुक्ल), चतुर्दशीला आणि नवमीला एकचित्ताने या कवचाचा पाठ केल्यास हे पुण्य प्राप्त होईल.
“सर्व पाप विशुद्धात्मा सर्व लोक सनातनम् | वनेरणे महाघोरे भयवादे महाहवे ||१२|| ”
सर्व लोकांत सर्व पापांपासून शुद्धी देणारे, सनातन काळापासून चालत आलेले हे कवच आहे.
“जपेत्कवच मा देवि सर्वविघ्नविनाशिनी | भौमवार महापुण्ये पठत्कवचमाहितः ||१३|| ”
सर्व विघ्नांच्या नाश करणाऱ्या, हे देवी, महाघोर अशा अरण्यात असेच युद्धभूमीवर आणि भयंकर अशा वादविवादप्रसंगी तसेच मंगळवारी महापुण्यदायक अशा पर्वकाळी, एकचित्त करून या कवचाचा पाठ करावा.
“सर्वबाधा प्रशमनम् रहस्य सर्वदेहिनाम् | किमत्र बहुनोवतेन देवीसायुज्य प्राप्नुयात् ||१४|| ”
हे
रहस्यमय कवच सर्व प्राणीमात्रांच्या सर्व प्रकारच्या बाधांचे निवारण करते.फार काय सांगावे त्या साधकाला शेवटी सायुज्य मुक्ती प्राप्त होईल.
“इति श्री स्कंद पुराणे सहयाद्री खंडे तुरजामहात्मे ईश्वर पार्वती संवादे श्री तुरजा कवचम् संपूर्णम् |श्री उमारामेश्वरार्पणस्तु ||”
असे हे स्कंद पुराणातील सह्याद्री खंडातील तुरजा महात्म्यातील ,ईश्वर पार्वती संवादातील, तुळजा कवच संपूर्ण झाले.श्री उमारामेश्वरास अर्पण असो.
||श्री गणेशाय नम: ||
अतध्यानम्
“शामां पूर्णेन्दुवदनाम् श्वेतांबरधरां शिवाम् | महामेघ निनादातां निर्वाते दीप वस्त्थिताम ||१||”
अतध्यानम्
तुळजाभवानी देवीचे ध्यान असे आहे,पूर्ण चंद्राप्रमाणे मुख ,सावळा वर्ण असून पवित्र असे शुभ्र वस्त्र धारण केलेले आहे.विशाल मेघाच्या धीरगंभीर ध्वनित शांत वातावरणातील स्थिर दिव्याप्रमाणे तिचे रूप आहे.
“भुजाष्टकयुक्ता बाणां चापशूल गदा धरम् | खड्गशंख गदाचक्र वरदाभयधारिणीम् ||२||”
आठ
हातांनी युक्त बाण, चाप, शूल, गदा धारण करणाऱ्या खड्ग, शंख, गदा व चक्र हाती धरणाऱ्या अशा व वर देणारी अभय मुद्रा धारण करणाऱ्या तुळजाभवानीचे ध्यान करावे.
“श्री गणेशाय नमः अथ तुळजा कवचम् |
श्री देव्युवाच देवेश परमेशान भवतानुग्रहकारक तुळजाकवचम् वक्ष्ये मम प्रीत्या महेश्वर ||
शृणुदेवी महागुह्यं गुहतरं महत् || तुळजा कवचम् वक्ष्ये न देयं कस्याचित् ||”
श्री गणपतीला नमस्कार असो.आता तुळजा कवच प्रकट करतो.श्रीदेवी म्हणाली ,हे देवेश भक्तावर कृपा करणाऱ्या परमेश्वरा ,माझ्यावरील प्रेमामुळे हे महेशा ,तू हे तुरजा कवच सांग .ईश्वर म्हणाले, हे देवी, मोठ्या गुढांपेक्षाही अतिशय गुढ असे हे महान तुळजा कवच मी सांगत आहे ते कोणालाही(भलत्या सलत्याला) देवू नये.
“अस्य श्री तुरजाकवचमालामंत्रस्य श्री रामचंद्र ऋषी श्री तुरजादेवता |
अनुष्टुप छंदः | श्री तुळजाप्रसादसिद्धर्थेजपेविनियोग
या
तुळजा कवच माला मंत्राच ऋषी म्हणजे स्वतः श्री राम व अधिष्ठात्री देवता श्री तुळजाभवानी आहेत.या कवचाचा छंद अनुष्टुप आहे.या कवचाचा विनियोग श्री तुळजादेवीचा प्रसाद प्राप्त होण्यासाठी आणि जप करण्यासाठी आहे.
“ श्री शंकर उवाच | तुळजा मी शिरः पातु भाले तू परमेश्वरी | नेत्रे नारायणी रक्षेत्कर्णमूले तू शांकरी ||१|| ”
श्री शंकर म्हणाले, तुळजादेवी माझ्या मस्तकाचे रक्षण ,नारायणी दोन्ही कर्णमुळांचे (कानांचे) रक्षण शांकरी करो.
“ मुखंपातु महामाया कण्ठम् भुवनसुंदरी | बाहुद्वयम् विश्वमाता हृदयंशिववल्लभा ||२|| ”
माझ्या मुखाचे रक्षण महामाया ,कंठाचे रक्षण भुवनसुंदरी करो, दोन्ही हातांचे रक्षण विश्वमाता, तसेच हृदयाचे रक्षण शिववल्लभा करो.
“नाभिं कुंडलिनीपातु जानुनी जान्हवी तथा | पादयो: पापनाशींच पादग्रम सर्वतीर्थवत् ||३|| ”
नाभिंचे रक्षण कुंडलिनी, गुडघ्याचे रक्षण जान्हवी, तसेच पायांचे रक्षण आणि सर्वतीर्थाप्रमाणे असणाऱ्या पायांच्या टोकांचे रक्षण पापनाशिनी करो.
“इंद्रायणी पातु पूर्वे आग्नेय्याम् अग्निदेवता | दक्षिणे नारसिंहीच नैऋत्याम् खड्ग धारिणी ||४||”
पूर्वेकडे इंद्रायणी तर आग्नेय दिशेकडे आग्नेय देवी रक्षण करो, दक्षिणेकडे नारसिंही, तर नैऋत्येकडे खड्गधारिणी रक्षण करो.
“पश्चिमेवारुणी पातु वायव्याम् वायुरुपिणी | उदीच्या पाशहस्ताच ईशान्ये ईश्वरी तथा ||५|| ”
पश्चिमेकडे वारुणी आणि वायव्येकडे वायुरुपिणी, उत्तरेकडे पाशधारण करणारी देवी, तर ईशान्येकडे ईश्वरी रक्षण करो.
“ऊर्ध्वंब्रह्मणिमे रक्षेद् दधास्या वैष्णवी तथा | एवं दशदिशोरक्षेत् सर्वांगे भुवनेश्वरी ||६|| ”
उर्ध्व दिशेकडे ब्रह्माणी तर अधो दिशेकडे वैष्णवी रक्षण करो, शरीरातील अशा दहा दिशांचे रक्षण भुवनेश्वरी करो.
“इदं तु कथितं दिव्यम् सर्वदेहिकम् | भूतग्रह हरं नित्य ग्रहपिडा तथैवच ||७|| ”
हे
सर्व शरीराचे करणारे असे दिव्य कवच सांगितले. हे भूतबाधा आणि ग्रहपीडा कायम दूर करणारे आहे.
“सर्व पापहरेदेवी अंते सायुज्य प्राप्नुयात् | यत्र तत्र न ववतव्यं यदिछेदात्मनोहितम् ||८|| ”
हे
सर्व पापांचा नाश करणाऱ्या देवी कवचाचे पठण करणाऱ्यास शेवटी सायुज्य मुक्ती प्राप्त होईल. स्वतःचे कल्याणकरू इच्छिनाऱ्यांने हे भलत्यासलत्या ठिकाणी सांगू नये.
“शठाय भक्तिहीनाय विष्णुद्वेषाय वै तथा | शिष्याय भक्तीयुक्ताय साधकाय प्रकाशयेत ||९|| ”
शठ
भक्तिहीन तसेच विष्णूचा द्वेष करणाऱ्या कोणालाही हे कवच सांगू नये. शिष्य-भक्तियुक्त अशा साधकाला मात्र ते प्रकट करावे.
“दध्यात कवचमियुक्तम् तत्पुण्यं शृणुपार्वती | अश्वमेध सहस्त्राणि कन्याकोटी शचानिच ||१०|| ”
हे
कवच कोणत्या प्रकारचे पुण्य देईल ते पार्वती तु सांग.(पार्वती म्हणाली)हजारो अश्वमेध केल्याचे,शंभर कोटी संख्यात्मक कन्यादान केल्याचे पुण्य---
“गवाम् लक्षसहस्राणि तत्पुण्यं लभते नरः | अष्टम्यां चतुर्दश्यां नवम्यां चैक चेतसा ||११|| ”
ते
पुण्य या कवच पठणाने माणसास प्राप्त होईल. अष्टमीला(शुक्ल), चतुर्दशीला आणि नवमीला एकचित्ताने या कवचाचा पाठ केल्यास हे पुण्य प्राप्त होईल.
“सर्व पाप विशुद्धात्मा सर्व लोक सनातनम् | वनेरणे महाघोरे भयवादे महाहवे ||१२|| ”
सर्व लोकांत सर्व पापांपासून शुद्धी देणारे, सनातन काळापासून चालत आलेले हे कवच आहे.
“जपेत्कवच मा देवि सर्वविघ्नविनाशिनी | भौमवार महापुण्ये पठत्कवचमाहितः ||१३|| ”
सर्व विघ्नांच्या नाश करणाऱ्या, हे देवी, महाघोर अशा अरण्यात असेच युद्धभूमीवर आणि भयंकर अशा वादविवादप्रसंगी तसेच मंगळवारी महापुण्यदायक अशा पर्वकाळी, एकचित्त करून या कवचाचा पाठ करावा.
“सर्वबाधा प्रशमनम् रहस्य सर्वदेहिनाम् | किमत्र बहुनोवतेन देवीसायुज्य प्राप्नुयात् ||१४|| ”
हे
रहस्यमय कवच सर्व प्राणीमात्रांच्या सर्व प्रकारच्या बाधांचे निवारण करते.फार काय सांगावे त्या साधकाला शेवटी सायुज्य मुक्ती प्राप्त होईल.
“इति श्री स्कंद पुराणे सहयाद्री खंडे तुरजामहात्मे ईश्वर पार्वती संवादे श्री तुरजा कवचम् संपूर्णम् |श्री उमारामेश्वरार्पणस्तु ||”
असे हे स्कंद पुराणातील सह्याद्री खंडातील तुरजा महात्म्यातील ,ईश्वर पार्वती संवादातील, तुळजा कवच संपूर्ण झाले.श्री उमारामेश्वरास अर्पण असो.
ब्रिटिशांनी
"लटकणारा बगीचा "म्हणून नाव दिलेल्या आमच्या मुंबईतल्या मलबार टेकडीच्या
प्रवेशद्वारातून निघतच होतो एवढ्यात दोन मुलांना एक जाडा मुलगा शिट्टी
वाजवून बोलावत होता ,त्याने स्वच्छता मोहिमेवरील असलेल्या दंडाधिकारी चा
पोशाख परिधान केला होता .पहिल्या मुलाला त्याने बोलाविले आणि दुसर्याला
देखील बोलाविले , मला नक्की समजत नव्हत नाक्किः काय चाललाय ते नंतर कळल
ते सिगारेट पीत होते आणि त्यांनी त्या प्रवेशद्वारा
समोरच फेकले ,लगेचच त्या दंडाधिकारीने त्यांना विचारले तुम्ही कुठून आलात
ते म्हणाले "सुरत" मग त्याने त्या दोन्ही मुलांकडून प्रत्येकी चारशे
रुपयांची मागणी केली ,त्यातला एक मुलगा म्हणाला मी तर सिगारेट नव्हतो पीत ,
तेंव्हा दंडाधिकारी म्हणाला मला तू **** नको समजूस माझ तुझ्या कडे लक्ष्य
होत मित्रा
आणि त्याने आठशे रुपये घेतले ,आश्चर्याची गोष्ट म्हणजे अशे सर्व दंडाधिकारी सर्वत्र मुंबईत ठेवावे …मग बघूया हे अस्वच्छता करणारे कचरा कशे करतील ते ?
आणि त्याने आठशे रुपये घेतले ,आश्चर्याची गोष्ट म्हणजे अशे सर्व दंडाधिकारी सर्वत्र मुंबईत ठेवावे …मग बघूया हे अस्वच्छता करणारे कचरा कशे करतील ते ?
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